उदय सरिता रक्तो रक्तष्चास्तमये तथा।
संपतौ च विपतौ च महतामेकरूपता।।
संस्कृत के इस सुभाषित में कवि कहते हैं कि उदय एवं अस्त होते हुए सूर्य समान रूप से रक्तवर्ण लाल होता है। उसी प्रकार से सज्जन लोग भी सम्पन्नता एवं विपन्नता में एक समान एकरूपता से व्यवहार करने वाले होते हैं। इसी प्रकार से हमें भी हमारे जीवन में आने वाले सुख-दुख को अतिथि मानकर उनके साथ सहानुभूति एवं आत्मीयता से समस्याओं के प्रति स्पंदित होकर उनका समाधान सुझाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
राजस्थानी--
संस्कृत रा इण सुभाषित में कवि सीख देवै क उगता अर आन्तता सूरज रौ रंग लोही री जियां लाल हुवै। इणी तरह सूं सज्जन लोग सम्पन्नता अर विपन्नता में एक समान एकरूप बौवार करै। इण तरह सूं आपां रै जीवण में आवण वाळा सुख-दुख ने पांवणा मान अर सहानुभूति अर आत्मीयता सूं समस्यावां रौ समाधान करण वास्तै कोसि करणी चाहिजै।
संपतौ च विपतौ च महतामेकरूपता।।
संस्कृत के इस सुभाषित में कवि कहते हैं कि उदय एवं अस्त होते हुए सूर्य समान रूप से रक्तवर्ण लाल होता है। उसी प्रकार से सज्जन लोग भी सम्पन्नता एवं विपन्नता में एक समान एकरूपता से व्यवहार करने वाले होते हैं। इसी प्रकार से हमें भी हमारे जीवन में आने वाले सुख-दुख को अतिथि मानकर उनके साथ सहानुभूति एवं आत्मीयता से समस्याओं के प्रति स्पंदित होकर उनका समाधान सुझाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
राजस्थानी--
संस्कृत रा इण सुभाषित में कवि सीख देवै क उगता अर आन्तता सूरज रौ रंग लोही री जियां लाल हुवै। इणी तरह सूं सज्जन लोग सम्पन्नता अर विपन्नता में एक समान एकरूप बौवार करै। इण तरह सूं आपां रै जीवण में आवण वाळा सुख-दुख ने पांवणा मान अर सहानुभूति अर आत्मीयता सूं समस्यावां रौ समाधान करण वास्तै कोसि करणी चाहिजै।
सादर नमस्कार
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDeleteTrue lines
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