सुभाषित री सौरम
संयोजयति विद्यैव नीचगापि नरं सरित्।
समुद्रमिव दुर्धर्षं नृपं भाग्यमतः परम्।।
सुभाषित का हिन्दी अर्थ
संस्कृत के इस सुभाषित में बताया गया है कि किस
प्रकार से बड़े और महान लोगों की संगत और सम्पर्क
से छोटे लोगों का उद्धार हो जाता है।जिस प्रकार से नीचे
की ओर बहती नदी अपने साथ तिनके आदि तुच्छ
पदार्थों को बहाकर ले जाती है और उन को समुद्र में
मिला देती है, ठीक उसी प्रकार से ही विद्या ही छोटे
मनुष्य को राजा से मिलाती है और उससे ही उसका
भाग्योदय होता है।
राजस्थानी अर्थाव
जियां पहाड़ां सूं नीचे कांनी बहवंती नदी आपरे
सागे तिणकला अर दूजा छोटा पदार्थां ने समुद्र सूं
मिला देवे। बियां ही विद्या ही छोटा आदमी ने राजा
सूं मिला देवै अर इण सूं ही उण छोटा आदमी री
किस्मत जाग जावै अर उण सूं ही उण रौ भाग जाग जावै।
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