सदा न विपदा रह सके,सदा न सुख कोय...
फेसबुक माथै आज दिनुगे विक्रम सा टापरवाड़ा
री पोस्ट बांच'र मन राजी हुयो। विक्रम सा
राजस्थानी कवि री रचना पोस्ट करी। इण
रचना सूं सीख मिले। मायड़ भासा रै ग्यान
रौ अखूट खजानो आज भी श्रुत परम्परा में
मिले। इण खजाना ने अंवेरण री जरूरत है।
आज सोशल मीडिया रा जमाना में फेसबुक
अर वाट्सअप ने मायड़ भासा सारू मोकळी
उपयोगी पोस्ट कर सका,तो पेलां तो विक्रम
सा री पोस्ट रौ अंस बांच अर इण रौ आणन्द ल्यो...
सदा न फूले केतकी, सदा न सावण होय ।
सदा न विपदा रह सके,सदा न सुख कोय।।
सदा न मौज बसंत री , सदा न ग्रीसम भांण।
सदा न जोबन थिर रहे,सदा न संपत मांण।।
आ है मायड़ भासा री विरासत। लोक में प्रचलित
इण ने सुणता ही सगळी बात समझ में
आय जावै। मायड़ भासा रा हेतालुवां सूं
अरज है क राजस्थानी बांचता रहवो, बोलता
रहवो अर जाण पिछाण वाळा मायड़ भासा ने
चाहवण वाळा रा वाटसअप नम्बर फेसबुक
रा इण सन्देस रै नीचे ही लिख दयो। उणाने
राजस्थानी सौरम री सामग्री रौ लिंक वाट्सअप
पर भेज सकां। आप आपरी जाण पिछाण रा
लोगां ने आ भी बता सको क google में
rajasthanisouram या हिंदी में राजस्थानी
सौरम लिख'र भी सौरम री नूंवीं पोस्ट बांच सको।
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