इमरत बचन
संसार कटुवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे ।
सुभाषितं च सुस्वादः संगति सज्जने जने ।।
कवि अर्थावे है क -- -- --संसार रूपी विष वृक्ष में इमरत रै बरोबर दो ही फळ मिले।
इण में सूं एक है मीठा बचनां रौ रसास्वादन करावण वाळा सुभाषित अर दूजा है
सज्जनां री संगति। कवि कहवे वास्तव में ओ संसार दुखां रौ भंडार है, पग-पग
माथै निराशा री स्थितियां रौ सामनो करनो पड़े।संसार में दूजां रा मीठा बोल
सुणन मिल जावै अर सद्व्यवहार करण वाळा सज्जनां रौ सागो मिल जावै।
पछे कांई कहणो। मीठा बोल अर सद्व्यवहार रौ कोई मोल कोनी हुवे। पण
ए दोनूं बातां दूजा लोगां रौ दुख भुलावण में सहयोग करे। दुख सूं भरया
संसार में भगवान री इती किरपा हुय जावै तो मोटी बात हुवे।
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