ईसरा-परमेसरा
रंग राजस्थानी हरि रस
दळै तुमि वार किता दसकंध,बँध्यौ दध देव छुङावण बंध।
लिधा तैं वार किता गढ लंक,सँघारिय दैत मनाविय संक।।43।।
कवि अर्थावे हे ईश्वर ! इस प्रकार कल्प-कल्प में आपने कितनी ही बार देवताओं को बंधन मुक्त करने के लिये समुद्र को बाँधा और कितनी ही बार लंका पर विजय प्राप्त कर रावण आदि दैत्यों पर धाक जमा कर उनका नाश किया।
प्रस्तुति...सवाई सिंह महिया.
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