रंग_राजस्थानी. हरि-रस
खत्री वँस वार किताइक खेस,प्रिथव्विय विप्रन कूं दिय पेस।
जिपै तैं वार किता बळि जंग,रखावण तात जनेताय रंग।।33।।
कवि अर्थावे
आपने कितनी ही बार अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए बङे-बङे पराक्रमी राजाओं को जीत कर एवं कितने ही क्षत्री-वंशो का नाश करके उनके राज्य और उनकी पृथ्वी ब्राह्मणों को दान कर दी।
-प्रस्तुति सवाई सिंह महिया
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