रंग_राजस्थानी
हरि-रस
दाब्यौ बळ दांणव लीधौ दाँण, उपाविय पिंड जमी असमांण।
बाँध्यौ तैं वार किता बळराव,वगोविय दाँणव कीध वणाव।।30।।
कवि अर्थावे .....
आपने बलि दानव से कितनी ही बार दान के रूप में पृथ्वी को प्राप्त कर , पृथ्वी से आकाश पर्यन्त विराट रूप धारण करके उसे अपनें ही वचनों द्वारा बाँध कर पाताल में जाने के लिए विवश किया । इस प्रकार ऐसे कई बनाव(रूप) बनाकर आपने दानवों का नाश किया ।
प्रस्तुति- सवाई सिंह महिया
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