रंग_राजस्थानी हरि रस
दईतां आगळि देव दतार,उबारिय देव किताइक वार।
करेवाय देव तणा वड कांम, रह्यौ बिच दैत महाजळ रांम ।।21।।
कवि अर्थावे है .... इस प्रकार कई बार दैत्यों द्वारा सताये जाने वाले देवताओं को आपने छुङाया और उनके बङे-बङे कार्य सिद्ध करने के निमित्त अथाह समुद्र के अन्दर प्रवेश कर दैत्यों के मध्य हे राम ! आप इस प्रकार लीला करते रहे ।
प्रस्तुति------सवाई सिंह महिया
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