ईसरा-परमेसरा
हरि-रस_छंद मोतीदाम
हुओ दिंगमूढ ब्रहम्माय देख,अजंपाय दाखव रूप अलेख*
सनक्क सनातन गात सुरीत,चिताविय ब्रह्माय हंस चरीत।।17।।
कवि अर्थावे----
अजपा जाप द्वारा जपने योग्य आपके इस अलख रूप को अपनी सृष्टि में इस प्रकार देख कर ब्रह्मा दिङ्मूढ हो गये । उस समय आपने सनक सनातन आदि मानस पुत्रों के (रूप में) और हंसावतार धारण किए और उनके संशय को मिटाकर उन्हे सचेत किया ।
प्रस्तुति-----सवाई सिंह महिया
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