ईसरा सो परमेसरा
तो अै हों पूरा तवण , सकां केम समराथ ।
चत्रभुज ! सह थारा चरित ,निगम न जाणैं नाथ ।।6।।
कवि अर्थावे क हे चतुर्भुज प्रभो ! मैं उन्हें वर्णन करने में सम्पूर्णतया समर्थ ही कैसे हो सकता हूं ? हे नाथ ! आपके उन समस्त चरित्रों को वेद भी तो नहीं जानते हैं ।
प्रस्तुति-----सवाईसिंह महिया
#ईसरा_परमेसरा
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