काळी घणी करूप, कस्तूरी कांटा तुले।
सक्कर बड़ी सरूप, रोड़ा तुले राजिया।।
कवि राजिया आपरा
सोरठा में कहवे'क आदमी री पूछ रंग रूप सूं नहीं उणा रा गुणा
सूं हुयां करे।ज्यूँ काळी अर कुरूप कस्तूरी तो कांटा में तुले अर सक्कर बड़ी सरूप
हुवे पण रोड़ा मतलब भाटा रा बाटा सूं तोली जावै। राजिया री बखत सक्कर सेर,आधा सेर अर पांच सेर र् भाटा सूं तोली
जावन्ति।
जग में नर हळवा जकै बोलै हळवा बोल
ReplyDeleteआप तणै मुख आप री मूरख करदे मोल
इस जगत में वे लोग जो घटिया किस्म के है वे घटिया ओछी बातें ही करते है ओर इस प्रकार वे अपने ही मुह से अपनी मूर्खता अपना ओछापन प्रकट कर देते है इसलिए कवि नें उपरोक्त दूहा कहा है सही है