सचिव वैद गुरु तीन ऐ,जो बोले भय आस।
राज देह अर धरम कौ, होय बेगही नास ।।
राजस्थानी
का दोहा आज भी प्रासंगिक है, इसके अनुसार कवि कहता है कि जब राज्य का सचिव
अर्थात मंत्री वैद्य चिकित्सक और गुरु शिक्षक तीनों ही भी प्रकार के दबाव
या लोभ में आकर अपनी सहमति प्रगट करै तो समझलो की राज्य , शरीर और धर्म का
नाश होना निश्चित है। राज्य के सचिव या मंत्री से राज्य का, चिकित्सक से
शरीर का और गुरु शिक्षक से धर्म और जीवन का नाश होगा।
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