घर धर मंडण ना घिरे, घट सूना कर घाल।
गाढ़ी चिंता गोरड़ी, काढ़ूं किस विध काल़।।
घर
मंडण यानि पतिदेव,धर मंडण यानि इन्द्रदेव दोनो ही नहीं घिरे यानि बाहुड़ै
नहीं या घर नहीं आए हैं इस कारण घड़ा और हृदय दोनो सूने-रीते पड़े है।गृहिणी
गहन चिंतातुर है कि ऐसी विकट स्थिति में अकाल़ और समय को कैसे व्यतीत करूं।
महेन्द्र सिंह खिडिया
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